परसों परसों नरसों बरसोंजुग बीते जाल कहाँ रहती है...भक्ति गीत
भदौनी (उत्तर प्रदेश) से अजय कुमार मिश्रा सरस्वती वंदना सुना रहे हैं:
परसों परसों नरसों बरसोंजुग बीते जाल कहाँ रहती है-
प्रेमसुधा रस इन दोनों सेतीस प्रेमी का सुख ही आहें भारती है-
स्वास ही स्वास में कण भर ले कबहु न धनिस ते तिलती है – मोहउ पुकारके देहु भई जब लंबू जी लंबू कहा करती है-
खड़ी हो कटाक्ष करके एक नेत्र कटाक्ष नेत्र काल-
भगवान तुम्हारी अरमान मिटाए जाते हैं-
आशाओं को क्षीण कर मृत्यु में मिलाए जाते हैं...