यातना गंध...अबूझमाड़ के जंगलों से एक कविता
यातना गंध
कोयलीबेड़ा से पच्चीस किलोमीटर दूर
अबूझमाड़ के जंगलों में वे आये
अपनी जंग लगी निष्प्राण बंदूकों को लटकाये
वे आये
और अपने थुलथुल शरीर की समूची गंदगी उड़ेलकर चले गये
‘‘क्या तुम्हें डर नहीं लगता जंगली जानवरों से?’’
‘‘नहीं, मुझे आदमियों से डर लगता है
जो दस की संख्या में आये थे बूट चमकाते हुए
मेरी पवित्र आत्मा को जिन्होंने ढक दिया था रात के अंधेरे से
दिन के भरे उजाले में।’’
टूटे-फूटे ‘शब्दों में गोंडी में उसने उत्तर दिया
सबसे बड़ा अपराध था
इस साक्षात्कार को छापना
कि खाकी वर्दीवाले कुत्ते जनता के सबसे बड़े दुश्मन हैं
मेरे विचारों से उन्हें सख्त नफरत है
वे उसमें बारूद की गंध सूंघते हैं
वे बलात्कार का हक मांगते हैं
और मुझसे कहते हैं मैं उनकी मां-बहन एक न करूं
इससे व्यवस्था को खतरा पैदा होता है
‘व्यवस्था विद्रोह’ इस राजसत्ता को कतई पसंद नहीं है
हर बस स्टॉप पर घूरती है एलआईबी की कंजीरी आंखें
मेरे आने-जाने पर कहीं कोई पाबंदी नहीं है
लेकिन मेरे हर ‘शब्द और हरकत उनकी पहुंच में है
रात के अंधेरे में वे मुझे नजरबंद कर लेते हैं
मेरे मुंह में मूतते हैं अट्टहास लगाते हैं
जिंदगी के आओ मजे लूटें
इन भूखे नंगों से इतना प्यार क्यों?
वे पूछते हैं
विचार बड़ा कि हथियार?
-आओ चलें रंडियों के पास
क्रांति बड़ी कि वर्दी?
-आओ ‘शराबखोरी करें
मेरी आस्था को बंधक बनाना चाहते हैं वो
मैं आस्था के समंदर में डूबना चाहता हूं
उसकी लहरों से खेलना चाहता हूं
साठ साल लंबे यातना गृह को तोड़कर
वहीं पहुंचना चाहता हूं फिर
जहां से जिंदगी ‘शुरू होती है
और कभी खत्म नहीं होती
मौत की यातना गंध को जला देना चाहता हूं
पृथ्वी की अतल गहराईयों में दबे ज्वालामुखी में दफनाकर
जैसे वह कभी था ही नहीं
‘शैतान कम्युनिस्ट!
वे चीखते हैं
नींद पर भी पहरा बैठा दिया उन्होंने
सपनों से उन्हें बहुत दुश्मनी है
उनकी गोलियां मेरी पीठ का पीछा करती हैं
क्रांतिकारी होना सबसे बड़ा देशद्रोह है उनकी नजरों में
वे मुझे नक्सलवादी घोषित करते हैं
विडंबना यह कि नक्सली भी मुझे अपना दुश्मन समझते हैं
क्रांति कर्म में प्यार धर्म को प्रवेश देने के अपराध में
‘क्रांति को इस समय बंदूक की जरूरत है प्यार की नहीं
जो प्यार करेगा वह वर्ग ‘शत्रु है
जनशत्रु है क्रांति ‘शत्रु है’
किसी लाल किताब को पलटकर वे कहते हैं
कामरेड, मुझे अराजक विचारों के लिए क्षमा करें
लेकिन क्या करूंगा मैं उस क्रांति का
जिसमें प्यार ही जिंदा न रहे
जिसमें मैं ही रहूं बाकी कोई और न हो
क्रंाति की जरूरत तो प्यार के लिए ही है
प्यार जिंदा रहेगा क्रांति के पहले और बाद भी
वाकई कितनी विकट यातना है
धरती पर जिंदा रहूं बिना प्यार किये-कराये!
अपने जन्म से लेकर आज तक
मुझसे लिपटी यातना गंध से मुक्ति पाना चाहता हूं मैं
क्रांति मुझे इस यातना गंध से मुक्ति दिलायेगी
इसीलिए मैं क्रांतिकारी हूं
निर्बाध प्यार करने के लिए मुझे क्रांति की नितांत जरूरत है
मेरे विचारों से उन्हें सख्त नफरत है
मेरी आस्था को बंधक बनाना चाहते हैं वो
सबसे बड़ी दुश्मनी है उन्हें मेरे सपनों से
वे मुझे नक्सलवादी कहते हैं!
साठ साल लंबी यातना से गुजरने के बाद भी
मैं पहचान सकता हूं अपने लहू का लाल रंग
और उसका नमकीन स्वाद
देख सकता हूं सपना लाल परचम फहराने का
जिंदगी की धड़कनों को सुन सकता हूं साफ-साफ
महसूस सकता हूं उसका सुनहरा उत्ताप
यातना गृह में बंदी खून से लथपथ अपने ‘शरीर के बावजूद
नवंबर की रात में आसमान में टंके पूर्णिमा के गदराये चांद के नीचे
मैं सूघना चाहता हूं उस लड़की के लंबे भूरे बालों को
जिसने हमेशा मेरी खिल्ली उड़ाई है
‘तुम तो क्रांति के लिए ही बने हो’ ऐसा कहकर
अपनी इस जीवित संवेदना के लिए
मैं किसे धन्यवाद दूं?
ओ मेरे लोगों
तुम्हारा लाल सलाम !
संजय पराते