सुन दीदी मोर भैया, सुन ले गा संगवारी...आदिवासी पर एक गीत
सुन दीदी मोर भैया, सुन ले गा संगवारी
आदिवासी अब नहीं तो मानेगा, रोवत है भ्रष्टाचारी
छत्तीसगढ़ और झारखंड उड़ीसा, तीनो राज्य ला बसाबो
तभी तो शाषन पर शाषन ला भैया जुरमिल के हटाबो
गोची गुनी मा अब नई तो बनेगा आदिवासी के आगे पारी
धान कोदो कुटकी बोके, अन्न धन हम उपजाथन
लोग लईका स्यान लेके, भाजी कोदई मा भुलाथन
यही कहत हों सुन मोर दीदी, सही कहत हों सुन मोर भैया
लोहे गा एला भारी, सुन ले गा संगवारी
परम्परागत संस्कृति ला भैया, स्वयं के ध्यान भुलाहो
जंगल झाडी के जड़ी बूटी ला दीदी, होही बीमारी तो खाहो
ए दादा दीदी सुन ले जनहित में है जारी