कइयो तीरथ कइके देखेन, सब लाई डारिन पण्डा...बघेली कविता
कइयो तीरथ कइके देखेन, सब लाई डारिन पण्डा
ढ़ोंगी और पाखंडी सबके सब कइ लिहिन हैं धंधा
मंदिर बन गई है दुकान ,न लगाई पूँजी पैसा
छान के रबड़ी माल पूआ , होय गए भैसा
बीता -बीता भर के चुदी राखै ,हाथ भरै के दाढ़ी
भोग लगावै देवता जी का ,आपुन पेलइ दूध के साढ़ी
मूढ़े ,घुटकी,पेटे हाथे मा खौर के चन्दन कानेन मा
पहिन के गेरुआ उन्ना -लत्ता , नहीं आवे पहचाने मा
जांच परत के घेटहर माला ,गैर मन सही झूलै
साझइ पूजा-पाठ सब अपने आगे ढ़ाबे
बड़े-बड़े जे मठाधीस हैं , एयर कोल्ड के बंगला चाही
चेला-चेली मोटर गाड़ी, सातव सुबिधा सगला चाही
मंदिर मा ही जैसे घुसके ,जैसे ढेहरी माँ धरबै मूढ़
जबरन हाथ में बढ़ के डोरा ,रुपया मागै एकउ पूत
घोर के सेंदूर धोपयै चन्दन दूइय ठे रेवरी दे पकड़ाय
पैसा नोचय के खातिर घेरे,जैसे गिद्ध मरी का खाय
गोड़े गिरै चढ़ावै के खातिर ,जेके रोपिया थोरे होय
करुण आयेके आखी काढ़े ,जैसे कर्जा लगी हो
जैसे कर्ज लगी हो.…………………
भैया प्रयाग राज के संगम मा ही असौ दिखेन तमासा
तख्तन में हि बैठे पण्डा ,असैन्याय के खासा
घटिन में आहिन बांध के बछिया जीतै पूंछ धराबै
अगड़म -बगड़म पढ के जल्दी ,रुपया लाई भगावा
साँझ के पहुचै हौली मा ही लैले देसी ठर्रा
नटई के जर भर थुथुर के खासा मारत है गुलठर्रा
जब कि अंधर ,लंगड़ , लूल, बेचारे फटहा धै धै बोरा
भर्ती रस में पेट के खातिर ,फिर मगाई लई -लई खोरा
तोहका नही देबाईया कोऊ,वपुरो को दुई आना
सौ मा एक दुई हमा दयालू निहुर के धै दे दाना
इतना पढ़ेँन लिखेन है अपना पचेन डोगियन को पहिचानी
कहै रामलखन बघेल न भैया ,करै व मनमानी