छत्तीसगढ़ी कविता : चऊ मास के पानी परागे, जाना माना आकाश हर...
ग्राम-देवरी, जिला-सुरजपुर (छतीसगढ़) से मोनू सिंह कश्यप एक छत्तीसगढ़ी कविता सुना रहा हैं :
चऊ मास के पानी परागे, जाना माना आकाश हर-
चाउर सही छरा गे-
जग-जग ले अब चंदा उगथे, बादल भईगे फरिहर-
चारों खुट ले पृथ्वी माता दिखथे हरियर-हरियर-
रिगबिग ले अन्पुरना हर खेतन खेत मा छा गे-
नदियाँ अउ तरिया पानी कमती होयें लागीस-
रद्दा के चउ मॉस के चिखला झंझट्टा हा भगीस-
बने पेट भर पृथ्वी हर आज अघागे-
लक्ष्मी ला लौटाए खातिर, जब देवता अगुवाईस-
जब-जब ले पुराइन पाना, के डसना दसाइअन-
रिगबिग फेर कमल फुल हर, तरिया भर छतरा गे-
चारों खुट गे चारुन फुल, फूदक थे चिरय-चिरगुन...