गाएंगे तब तक रे कि जब तक काम नहीं...
गाएंगे तब तक रे कि जब तक काम नहीं...
हल चलाकर खेतों को मैंने ही सजाया रे
गेहूं चावल मक्के के दानों को उगाया रे
चूल्हा भी बनाया मैंने धान भी पकाया रे
राहों के भूखे बैठे रे कि मेरे लिए काम नहीं
मिट्टी की खुदाई की, भट्टी को जलाया रे
ईंटों को पकाया मैंने, बंगला बनाया रे
सांचा का हर एक् खम्भा मैंने ही उठाया रे
सौऊं कि फुटपाथ पे कि मेरे लिए काम नहीं
ढाकी को बनाया मैंने, मिलों को चलाया रे
तानाबाना जोड के कपडा बनाया रे
सपनों के रंग से उनको सजाया रे
मुझे कफन नहीं रे कि मेरे लिए काम नहीं
रेल को बनाया मैंने, सडकों को बिछाया रे
हवा में उडाया रे चन्दा से मिलाया रे
नाव को बनाया मैंने पानी पे चलाया रे
मेरी न ज़िन्दगी चले कि मेरे लिए काम नहीं
शाहजहां की ताज को मैंने ही बनाया रे
मन्दिरों को मस्जिदों को मैंने ही सजाया रे
बांस की सितार को मांदर को बजाया रे
मेरा संगीत कहां रे कि मेरे लिए काम नहीं
सपने सजाएंगे, ज़िंदगी बनाएंगे
उंगलियों को मोड के हाथों को उठाएंगे
आसमान को छूएंगे ज़िंदाबाद गाएंगे
गाएंगे तब तक रे कि जब तक काम नहीं
लडेंगे तब तक रे कि जब तक काम नहीं
Posted on: Dec 11, 2011. Tags: Khushbu Verma
मोर माटी के मितान, चल मज़दूर और किसान...
मोर माटी के मितान, चल मज़दूर और किसान
ज़ुल्म अत्याचार ला मिटाए बर करो
संघर्ष और निर्माण
ये धरती के रखवाला किसान भोलाभाला
मेहनतकश मज़दूर दुनिया बनाने वाला
हमर गा कमाई में दुनिया हर जीयत हे
कौन पापी बैरी हमर लहू ला पीयत हे
भाई नौजवान, सुनो गा किसान
ज़ुल्म अत्याचार ला मिटाए बर करो
संघर्ष और निर्माण
खेती खार सुखावत हे, मशीन काम नंगावत हे
लइका मन के ज़िंदगी ला कौन डहर रेंगत हे
स्कूल मा मास्टर नई हे, अस्पताल में दवा नई हे
खेत बर पानी नई हे, इहां सुद्ध हवा नई हे
लइका औ सियान जागो गा मितान
ज़ुल्म अत्याचार ला मिटाए बर करो
संघर्ष और निर्माण
Posted on: Dec 12, 2010. Tags: Khushbu Verma
गाएंगे तब तक रे कि जब तक काम नहीं...
हल चलाकर खेतों को मैंने ही सजाया रे
गेहूं चावल मक्के के दानों को उगाया रे
चूल्हा भी बनाया मैंने धान भी पकाया रे
राहों के भूखे बैठे रे कि मेरे लिए काम नहीं
मिट्टी की खुदाई की, भट्टी को जलाया रे
ईंटों को पकाया मैंने, बंगला बनाया रे
सांचा का हर एक् खम्भा मैंने ही उठाया रे
सौऊं कि फुटपाथ पे कि मेरे लिए काम नहीं
ढाकी को बनाया मैंने, मिलों को चलाया रे
तानाबाना जोड के कपडा बनाया रे
सपनों के रंग से उनको सजाया रे
मुझे कफन नहीं रे कि मेरे लिए काम नहीं
रेल को बनाया मैंने, सडकों को बिछाया रे
हवा में उडाया रे चन्दा से मिलाया रे
नाव को बनाया मैंने पानी पे चलाया रे
मेरी न ज़िन्दगी चले कि मेरे लिए काम नहीं
शाहजहां की ताज को मैंने ही बनाया रे
मन्दिरों को मस्जिदों को मैंने ही सजाया रे
बांस की सितार को मांदर को बजाया रे
मेरा संगीत कहां रे कि मेरे लिए काम नहीं
सपने सजाएंगे, ज़िंदगी बनाएंगे
उंगलियों को मोड के हाथों को उठाएंगे
आसमान को छूएंगे ज़िंदाबाद गाएंगे
गाएंगे तब तक रे कि जब तक काम नहीं
लडेंगे तब तक रे कि जब तक काम नहीं