मेने मरते देखा हैं गाँधी को और एक चौराहे पे...कविता-

केम भाई कानपुर (उत्तरप्रदेश) से गाँधी जी का एक कविता सुना रहे हैं:
मेने मरते देखा हैं गाँधी को और एक चौराहे पे कभी खाखी वर्दी की आड़ में तो कभी तडपती जान में कभी अस्पताल के दौर पे तो कभी न्या के चौखट पे कभी खुद कैद के बेडीयो में तो कभी खुले आसमा में कभी भिखरी के रूप में तो कभी जलती लासो के रूप में हर एक इन्शान में और हर एक काल में और हर एक समाज में कल भी आज भी मेने मरते देखा हैं गाँधी को...

Posted on: Oct 11, 2022. Tags: KANPUR KEM BHAI POEM UP

Recording a report on CGNet Swara

Search Reports »


YouTube Channel




Supported By »


Environics Trust
Gates Foundation
Hivos
International Center for Journalists
IPS Media Foundation
MacArthur Foundation
Sitara
UN Democracy Fund


Android App »


Click to Download


Gondi Manak Shabdkosh App »


Click to Download