एक घर में पांच दिये जल रहे थे, कहानी...
स्वप्न जोशी जिला-झांशी, (उत्तरप्रदेश) से कहानी सुना रहें है,कहानी का नाम है, दिया-
एक घर में पांच दिये जल जल रहे थे, एक दिन पहले दिये ने कहा इतना जलकर भी मेरी रोशनी की इन लोगों को कोई कद्र नहीं, इतना कहकर बहतर यही होगा का मै बुझ जाऊ विभव खुद को घर्क समझकर भुझ गया, जानते है वो दिया कौन था वो दिया था उत्साह का प्रतिक दूसरा दिया था शांति का प्रतिक उसने कहा मुझे भिओ भुझ जाना चाहिए निरंतर शांति के प्रतिक रोशनी देने के वाबजूद भी लोग हिंसा कर रहें है, और इतना कहकर शांति का दिया भुझ गया | शांति के दिया के भुझने के बाद जो तीसरा दिया हिम्मत का था, वो भी अपनी हिम्मत खो बैठा उत्साह शांति अब और हिम्मत के न रहने पर चौथे दिये ने भुझना ही उचित समझा| चौथा दिया समृधि का प्रतिक था सभी दिए भुझने के बाद केवल पांचवा दिये अकेला ही जल रहा था हल्का के पांचवा दिया सबसे छोटा था मगर फिर भी वह निरंतर जल रह था, तब उस घर में एक लड़के ने परवेश किया | उसने देखा कि उस घर में सिर्फ एक ही दिया जल रहा है, e देख ओ खुशी से झूम उठा, चार दिया भुझने के वजह ओ दुखी नहीं हुआ बल्कि ये सोचकर के खुश हुआ, कम से कम एक दिया तो जल रहा है उसने तुरंत पाचवा दिया उठाया और फिर से ओ चारों दिया जला दया जानते है ओ पांचवा अनोखा कौन था, वो था उम्मीद का दिया इसलिए अपने घर में अपने मन हमेशा उम्मीद का दिया जलाये रखना चाहिए लेकिन सब दिया भुझ जाये उम्मीद का दिया कभी नहीं भुझना चाहिए क्योकि एक ही दिया काफी सभी दिये को जलाने लिये | (MS)