मेरे इतिहास के पन्नों में युग युग देखे, दुःख सुख देखे...एक कविता
मेरे इतिहास के पन्नों में
युग युग देखे, दुःख सुख देखे
पर लोकतंत्र के नाम पर
ऐसी व्यवस्थित लूट नही
मैंने राजसिंहासन पर
गौरी देखे तुगलक देखे
पर राजद्रोह के मुकदमे में
अजमल कसाब सी छूट नहीं
मैंने सत्ता के मंचों पर
बर्बर देखे बाबर देखे
पर राजनीति के प्रपंचो में
इतने सारे झूठ नहीं
मैंने सत्ता की गलियों में
हिटलर देखे डायर देखे
पर लोकतंत्र को घायल करते
दिल्ली वाले ठूठ नहीं
सैकड़ो बरस गुलामी के
घर वाले ही चोर बने
भारत तेरी तकदीर में
इससे बड़ी कोई फूट नहीं
सुमित शर्मा
Posted on: Jul 09, 2011. Tags: Asha Kachru
कौन कहता है जन्नत इसे,हमसे पूछो जो घर में फंसे...
कौन कहता है जन्नत इसे,हमसे पूछो जो घर में फंसे
ना हिफाज़त ना इज़्ज़त मिली, कर कर कुरबानी हम मर गए
हमने हर शह संवारी मगर,खुद हम बदरंग होते गए
अपने हाथों बनाया जिन्हें, हाथ उनके ही हम पर उठे
घर के अंदर भी गर मिटना है, तो सम्हालो ये घर हम चले
जिसमें दिन रात औरत जली, ऐसे घर से हम बेघर भले
आशा कचरू
Posted on: Apr 18, 2011. Tags: Asha Kachru
Govt denies help, Women get together to get their own borewell...
Asha Kachru is reporting from Kohir village in Medak district of Andhra Pradesh. She says in a colony nearby government was supposed to put a borewell as people are facing severe water problem. But the government people said there is no underground water available in the area. Then women got together and dug their own well which is giving them lots of water. Asha interviews one of the woman Salima Begum
Posted on: Jan 28, 2011. Tags: Asha Kachru
बेटा प्यारा बेटी नहीं, मैं पूंछू जी क्यों...
बेटा प्यारा बेटी नहीं मैं पूंछू जी क्यों
बोलो मैं पूछूं जी क्यों, हां जी मैं पूंछू जी क्यों
सदियों पुराने भेद रहें ये क्यों ज्यों के त्यों
एक ज़माना बेटी को नहलाया दूध में
आज बेटी को गर्भ में ही मार देते क्यों
बेटा जन्मे बांटो पेडे बेटी को दुत्कार
मां उदास बाप के सिर पे बोझ भारी क्यों
दोनों करे काम बराबर संग करें काम
एक जो उंचा दूसरा नीचा मैं पूंछू जी क्यों
बोलो मैं पूछूं जी क्यों, हां जी मैं पूंछू जी क्यों
Posted on: Dec 24, 2010. Tags: Asha Kachru
उठ जाग मेरी बहना, चल साथ मेरी बहना
उठ जाग मेरी बहना, चल साथ मेरी बहना
तू मान मेरा कहना, ये ज़ुल्म नहीं सहना x 3
सौहर का कहा मानो, ससुर की बात मानो
परिवार की भलाई को खुद के सर पे ले लो
फिर भी कोई इज़्ज़त न तेरी कोई कीमत
बस चुप ही चुप रहे तू, अपमान क्यों सहे तू x 3
सुबह सबसे पहले उठना, फिर झाडू पोंछा करना
फिर पानी भर के लाना, और चूल्हा भी जलाना
फिर चाय गरम बनाओ, श्रीमान को जगाओ
बाल बच्चों को सम्हलो और खाना भी पकाओ x3
गर नौकरी है करनी और पैसा भी कमाना
आदमी से कम तरक्की आदमी से कम मज़दूरी
तू घर की नौकरानी, ये तेरी ज़िंदगानी
ये ड्यूटी सोलह घण्टा, न उसकी कोई तनखा x3
औरत जो अब जगेगी, न मर्दों से डरेगी
न सत्ता से दबेगी, ज़ुल्म से लडेगी
मेहनतकशो से मिलकर दुनिया को बदल देगी
स्त्री मुक्ति की निशानी वो हाथों में थामेगी x3