भारतीय किसान के जीवन पर रजत कृष्ण की दो कवितायेँ
सुकाल में
इस बरस बारिश अच्छी हुई
माहो कटवा की मार से भी बची हुई है फसल
खडी फसल देख मेड पर बैठा जगतू सोच रहा है
बेटी का हाथ पीला कर देगा इस रामनवमी में
फसल कटी, खलिहान पहुँची
मिसाई हुई, अन्न माता घर आई
और दौड़े आया महाजन पीछे पीछे
मिली नोटिस बैक की
दो साल के नाहर नाले टैक्स की
याद दिलाने घर आया अमीन पटवारी भी
जगतू ने महाजन का पाई पाई चुकाया
चुकता किया बैंक का ऋण
भरा नहर नाले का टैक्स भी
इस तरह से जैसे जगतू ने जैसे गंगा नहाया
रही बात बेटी की
तो जगतू ने बड़े धूम धाम से
नियत समय पर किया उसका ब्याह
दामाद को दी उसके पसंद की टीवी और हीरो साइकल
ठीक ठाक की बारातियों की आव भगत
गोत्र जनों को जमाया भरपूर कलेवा
हां इसा बीच हमारे गांव के दुःख में जुड गया एक और दुःख
कि जगतू राम वल्ड भुखऊ कलार भी
जा खडा हुआ उनमें
जो रहे सहे खेत बेचकर
उस सुकाल में भी
हों गए भूमिहीन खेतिहर
अनुपस्थिति में फ़ैली उपस्थिति
तुम्हारे अनुपस्थिति के दिनों में मैं तुम्हारी उपस्थिति को ढंग से महासूस कर रहा हूं
जैसे महसूस करता है किसान
पक्की फसल में मिट्टी की उपस्थिति को
हवा पानी और धुप की उपस्थिति को
तुम मेरे हिस्से का धुप
हवा पानी धुप हों
और मिट्टी भी
तुमसे पक रही है फसल मेरे जीवन की
Posted on: Sep 29, 2012. Tags: Anwar Suhail
छत्तीस जनों वाला घर...रजत कृष्ण की एक कविता
छत्तीसगढ़ के एक छोटे से जनपद
बागबहरा में छत्तीस जनों वाला एक घर है
जहां से मैं आता हूं कविता के इस देश में
छत्तीस जनों वाला हमारा घर
९० वर्षीया दादी की सांसों से लेकर
डेढ़ वर्षीय खुशी की आँखों में बसता और खुश होता है
यहाँ आने जाने को एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं, चार दरवाजे हैं
और घर का एक छोर एक रास्ते पर
तो दूसरा दूसरे रास्ते पर खुलता है
घर के दाएँ बाजू पर रिखीराम का घर है
तो बाएँ में फगनूराम का
रिखी और फगनू हमारे कुछ नहीं
पर एक से जीजा का रिश्ता जुड़ा, तो दूसरे से काका का
घर के ठीक सामने गौरा, चौरा और पीपल का पेड़ है
जो मेहमानों को हमारे घर का ठीक ठीक पता देते हैं
यही, हां यही घर है मोहनराम साहू का, सावित्री देवी का
मोहित, शैलेश, अश्वनी, धरम, भूषण, महेश, रामसिंह, रामू और रजत कृष्ण का
आँगन में तुलसी और तुलसी के बाजू में छाता
छाता के बाजू में विराजता है बड़ा सा सिलबट्टा
जो दीदी भैया की शादी का स्वाद तो चखा ही
चखा रहा है अब स्वाद भांजी मधु और भतीजी मेधा की मेहंदी का
आँगन के बीच में एक कुआं है
और कुआं है बाडी में
बाडी से लगा है कोठा
कोठा से जुड़ा है खलिहान
जहां पर कार्तिक में खेत से आता है धान
और लिपि पुती कोठी गुनगुना उठती है
स्वागत है आओ नवान्न स्वागत है
आओ नवान्न स्वागत है...
रजत कृष्ण
Posted on: Sep 27, 2012. Tags: Anwar Suhail
मैं बाबा नागार्जुन को खोज रहा हूँ...एक कविता
मुझे अजीब लगता है
ये सुनकर
कि पांच सितारा होटलों में हो रहा है
दुनिया भर के साहित्यकारों का सम्मलेन
क्या आप को भी अजीब नहीं लगता
कि साहित्यकार लिखने के बल पर
पी रहे हैं मिनरल वाटर
डकार रहे विदेशी शराब
कि जिनके कथा या उपन्यास पात्र
मीलों दूर से ढोकर ला रहे पानी
या गटर के पास बिछावन लगाकर
बिता रहे ज़िन्दगी के पल-छिन
टी वी पर दिखलाई जा रही तस्वीरें
कार्यक्रम में शामिल साहित्यकारों की
खाए-पिए अघाए साहित्यकारों की तस्वीरें
आधुनिक वेश-भूषा में खूबसूरत साहित्यकारों के बीच
मैं बाबा नागार्जुन को खोज रहा हूँ
मैं मुंशी प्रेमचंद को खोज रहा हूँ
मैं त्रिलोचन को खोज रहा हूँ
और साहित्यकारों के बारे में
अपने सीमित ज्ञान को
कोस रहा हूँ.........
अनवर सुहैल
Posted on: Jan 26, 2012. Tags: Anwar Suhail
अच्छा हुआ अम्मा तुमने ली आंखे मूंद
अच्छा हुआ अम्मा तुमने ली आंखे मूंद
वरना बुज़ुर्गों के प्रति बढती लापरवाही से
तुम्हे कितनी तकलीफ होती
अच्छा हुआ अम्मा तुमने ली आंखे मूंद
बीबी के गुलाम और बाल बच्चों में मगन
बेटों का हश्र देख तुम बहुत दुखी होती
अच्छा हुआ अम्मा तुमने ली आंखे मूंद
धर्म ग्रंथों में छपे शब्द अब कोई नहीं मानता
मां के पैरों के नीचे होती है जन्नत
जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है
अच्छा हुआ अम्मा तुमने ली आंखे मूंद
वरना अक्सर सोना पडता भूखे पेट
क्योंकि सुन्न हुए हाथों से तुम बना नहीं पाती रोटियां
या घडी घडी चाय
अच्छा हुआ अम्मा तुमने ली आंखे मूंद
वरना बुज़ुर्गों की देखभाल के लिए
सरकारों को बनाना पड रहा है कानून
शिकायत पर बच्चों को हो सकती है जेल
क्या तुम बच्चों की लापरवाही की शिकायत
थाना, कचहरी में करती अम्मा?
नहीं न
अच्छा हुआ अम्मा तुमने ली आंखे मूंद
अनवर सुहैल
Posted on: Mar 25, 2011. Tags: Anwar Suhail
सपना मकान का देख रहा है घूरा
सपना मकान का
अपने मकान का
कैसे हो पूरा ?
खाली पेट
लंगोटी बांधे
सोच रहा है घूरा
सोच रहा है घूरा कैसे
कटेगी ये बरसात
पै ताने बैठा है कुत्ता
नहीं छोडता साथ
घर वालों की होती इज़्ज़त
चाहे हों आवारा
बेघर और बेदर को समझे
चोर ज़माना सारा
खाते पीते लोगों को ही
बैंको से मिलता लोन
जिनका कोई नाथ न पगहा
उनके लिए सब मौन
काहे देखे घूरा सपना
काहे दांत निपोरे
कह दो उससे
नंगा बूचा धोये क्या निचोडे
सपना मकान का देख रहा है घूरा
अनवर सुहैल