बिगुल बजा आज़ादी का,गगन गूंजता नारों से...
जिला-रीवा, मध्य प्रदेश से अंकुश शुक्ला आजादी पर एक कविता प्रस्तुत कर रहे हैं.
बिगुल बजा आज़ादी का, गगन गूंजता नारों से
बुला रही है आज उनकी, मुक्ति नगर सितारों से
एक बात कहनी है लेकिन, आप देश के प्यारों से
जनता से, नेताओं से, फौजों की खड़ी कतारों से
कहनी है एक बात हमें, इस देश के पहेरोदारो से
संभल के रहना अपने घर में, छिपे हुए गद्दारों से
झांक रहे हैं अपने दुश्मन, अपनी ही दीवारों से
संभल के रहना अपने घर में, छिपे हुए गद्दारों से
काट रहे जनता की जेंबे, लोभी -रिश्वतखोर यहाँ
नहीं चलेगा काम दोस्तों, केवल जय-जयकारों से
संभल के रहना अपने घर में, छिपे हुए गद्दारों से
आज उठा दो सभी दुकानें, यहाँ के काले धंधों की
दाल न हरगिज गलने देना, अब न ऐसे बन्दों की
सबसे कह दो यह जमीं है, आज़ादी के बन्दों की
भगत सिंह के स्मारक में जगह नहीं, सिर्फ झंडों की
जागो लोगों जगा रहा है, तुमको काल इशारों से
संभल के रहना अपने घर में, छिपे हुए गद्दारों से
संभल के रहना अपने घर में, छिपे हुए गद्दारों से