सोऊं क्यों भूखे पेट रे कि मेरे लिए काम नहीं...राजस्थान से एक गीत
हल चलाके खेतों को मैंने ही सजाया रे
गेहूं चावल मक्के के दानों को उगाया रे
चूल्हा भी जलाया मैंने धान भी पकाया रे
सोऊं क्यों भूखे पेट रे कि मेरे लिए काम नहीं
मिट्टी की खुदाई की भट्टी को जलाया रे
ईंटो को पकाया रे, बंगला बनाया रे
संसद का हर एक खम्भा मैंने ही उठाया रे
सोऊं क्यों फुटपाथ पे कि मेरे लिए काम नहीं
शाहजहां के ताज को मैंने ही बनाया रे
मंदिरों को मस्जिदों को मैंने ही सजाया रे
बांसुरी के तार को मांदल को बजाया रे
मेरा संगीत कहाँ रे कि मेरे लिए काम नहीं