मेरे इतिहास के पन्नों में युग युग देखे, दुःख सुख देखे...एक कविता
मेरे इतिहास के पन्नों में
युग युग देखे, दुःख सुख देखे
पर लोकतंत्र के नाम पर
ऐसी व्यवस्थित लूट नही
मैंने राजसिंहासन पर
गौरी देखे तुगलक देखे
पर राजद्रोह के मुकदमे में
अजमल कसाब सी छूट नहीं
मैंने सत्ता के मंचों पर
बर्बर देखे बाबर देखे
पर राजनीति के प्रपंचो में
इतने सारे झूठ नहीं
मैंने सत्ता की गलियों में
हिटलर देखे डायर देखे
पर लोकतंत्र को घायल करते
दिल्ली वाले ठूठ नहीं
सैकड़ो बरस गुलामी के
घर वाले ही चोर बने
भारत तेरी तकदीर में
इससे बड़ी कोई फूट नहीं
सुमित शर्मा