कुछ नया करें, पुराने वादों को भुलाकर, कुछ नए अरमान गढ़ें...
कानपुर, उत्तरप्रदेश से के.एम. भाई नए वर्ष के उपलक्ष्य में एक स्वरचित कविता का पाठ कर रहे हैं:
कुछ नया करें, कुछ नया करें, कुछ नया करें, कुछ नया करें-
पुराने वादों को भुलाकर, कुछ नए अरमान गढ़ें-
तिनका-तिनका बटोर कर, एक नया जहाँ गढ़े-
चलो कुछ नया करें...
रात के अंधेरो को चीरते हुए, एक नए उजाले की ओर बढ़ें-
टूट चुके ख़्वाबों को, फिर से सजोने का प्रयास करें-
चलो कुछ नया करें...
आँखों में आंसू ना हों, दिलों पर ना हो कोई पहरा – हर घर में ख़ुशी हो, हर चेहरा लगे सुनहरा-
चलो कुछ नया करें...
एक नए विश्वास के साथ, चलो एक नया कल गढ़ें-
छोटा ही सही, चलो हम सब मिलकर एक प्रयास करें – चलो कुछ नया करें...
बहुत कुछ नहीं तो कम से कम, सब के लिए एक रोटी की कामना करें-
चलो इस वर्ष इंसानियत के लिए, सब मिलकर प्रार्थना करें-
चलो कुछ नया करें...