मैं एक नारी की आवाज़ हूं...! मैं ही जननी हूं...! मैं ही सृजन हूं...!
पायल पद्दा, इन्दिरा गाँधी ट्राइबल यूनिवर्सिटी में एम.ए. प्रथम वर्ष की समाजशास्त्र की छात्रा हैं. महिला सशक्तीकरण पर एक कविता प्रस्तुत कर रही हैं:
मैं एक नारी की आवाज़ हूं...! मैं ही जननी हूं...! मैं ही सृजन हूं...!
मैंने ही समाज का निर्माण किया है, मैं ही समाज को दिशा देती हूं
मैं ही साधु बनाती हूं ! और मैं ही लोगों को मधुशाला ले जाती हूं
कभी मैंने माँ बनकर सृजन किया, कभी बहन बनकर स्नेह दिया
कभी पत्नी बनकर प्यार किया, और कभी बेटी बनकर खुशियां बरसाई
तो कभी बहू बनकर दो दुनिया सजाई....!
फिर क्यों किया जाता है, मुझ पर अत्याचार ?
क्यों वंचित किया जाता है, मुझे उन सभी अधिकारों से ?
क्यों मुझे जन्म लेने से पहले मार दिया जाता है ?
क्यों मुझे पढ़ने नहीं दिया जाता ?
आगे बढ़ने नही दिया जाता ?
मैं भी आगे बढ़ना चाहती हूँ !
मैं ही एनी बेसेन्ट, मदर टेरेसा, प्रतिभा पाटिल
इन्दिरा, कल्पना की उड़ान हूं
मैंने ही इतिहास रचा है, मैं ग्रंथों की वाणी सरस्वती हूं
मैं ही दुर्गा, लक्ष्मी, झाँसी की रानी
और मैरीकॉम की कहानी हूं...!
मैं हूं मर्दानी ! एक पल में संसार बसाए
एक पल में संसार जलाए....!
कभी धूप-कभी छाँव, कभी बर्फ-कभी अंगार
लड़कियां..! पहला-पहला प्यार
इन्हीं से है दुनिया गुलजार
मैं ही सृष्टि, ब्रम्हणी, आदिशक्ति, जनक जननी हूं
मत नकारो मुझे, मैं हूं...!