मेरे मुल्क के हुक्मरानो सुनो...!
कानपुर, उत्तरप्रदेश से के एम भाई एक कविता प्रस्तुत कर रहे हैं , कविता जनता पर शासकों के शोषण से सम्बंधित है :
मेरे मुल्क के हुक्मरानो सुनो !
उन गलियो की तरफ भी
एक रुख करके देखिये
जो आज भी आज़ाद होने
का स्वप्न देख रही हैं...
ज़िन्दगी ना सही
कम से कम मौत का
तो हक़ दीजिये !
एक निवाला अन्न का ना सही
कम से कम दो घूँट पानी तो दीजिये !
दो गज़ ज़मीन न सही
मेरी लाश को ढकने के वास्ते
एक मीटर कपड़ा तो दीजिये !