कोर्ट-कचेरी-तहसीलों में, फिरते हैं निर्धन परिवार...बुन्देली आल्हा गीत
ग्राम व पोस्ट-बांधकपुर, तहसील व जिला-दमोह (म.प्र.) से एकता लोक मंच के साथी संतोष भारती एक बुन्देली आल्हा (लोकगायन की एक विधा) गा रहे हैं. भूमिहीनों को जमीन के पट्टे के लिए अधिकारी किस प्रकार से टालमटोल करते हैं और आम आदमी इस पर क्या प्रतिक्रिया देता है, इस सन्दर्भ में यह गीत गाया गया है:
कोर्ट-कचेरी-तहसीलों में, फिरते हैं निर्धन परिवार
और अंत समय जब निर्णय सुनते, मिलती केवल उनको हार.…
सजा काटते बिन अपराधों, पड़ती है डंडों की मार
भूल गए रिश्वत लेने के, अधिकारी अपने अधिकार...
पैसे वाले निसदिन करते, चोरी-हिंसा-अत्याचार
कभी नहीं वे जाते थाने, घर पर आते थानेदार...
रुपया भरे अटैची ले गए, बोले चिंता की नई बात
खूब होने दो चोरी-डकैती, में है तुम्हरो हरदम साथ...
इस कारन से सीजीनेट में, जुड़ जाओ भैया सब साथ...
जब आम आदमी तहसीलदार-पटवारी के पास जाकर कहता है कि पट्टा की जरुरत है, तो अधिकारी कैसे जवाब देते हैं:-
पट्टा चाहिए हमको भैया, पटवारी से कही सुनाय
आना-कानी रोज करत है, नौ महीना लो हमें फिराय...
एक दिना पटवारी बोला, साँची भैया बात बताय
करो गरम जा जेब हमारी, पट्टो जल्दइ देहूँ बनाय
ना कर फिरत रहे तै सालों, तोरी सुनता कोउनो नाय
ऊपर तक तो बंधे कमीशन, एहीसे पट्टो मिलबे नाय
इस कारण से भैया, हम तुमसे कहत है
सीजीनेट में, सब मिल जाओ
सीजीनेट में कदम बढ़ाके, सबरी योजनाओं का फल पाओ