कौन कहता है जन्नत इसे,हमसे पूछो जो घर में फंसे...
कौन कहता है जन्नत इसे,हमसे पूछो जो घर में फंसे
ना हिफाज़त ना इज़्ज़त मिली, कर कर कुरबानी हम मर गए
हमने हर शह संवारी मगर,खुद हम बदरंग होते गए
अपने हाथों बनाया जिन्हें, हाथ उनके ही हम पर उठे
घर के अंदर भी गर मिटना है, तो सम्हालो ये घर हम चले
जिसमें दिन रात औरत जली, ऐसे घर से हम बेघर भले
आशा कचरू