है बहुत अंधियारा अब सूरज निकलना चाहिए...एक संघर्ष गीत
है बहुत अंधियारा अब सूरज निकलना चाहिए
जिस तरह से भी हो यह मौसम बदलना चाहिए
रोज़ जो चेहरे बदलते है लिवाज़ो की तरह
अब ज़नाज़ा ज़ोर से उनका निकलना चाहिए
लोगो ने बेचीं है अपनी आत्मा
यह पतन का सिलसिला और कुछ चलना चाहिए
फूल बनकर जो रोज़ आये यहाँ मचल गया
जिस्म फौलाद के साँचे में ढलना चाहिए
छीनता है जब तुम्हारा हक़ कोई
उसे आँख से आंसू नहीं शोला निकलना चाहिए
है बहुत अंधियारा, अब सूरज निकलना चाहिए