घर से बाहर भैलों, गैलों लुधियनवां...ए साजन...पलायन विरह गीत
कैलाश गिरी, बोकारो झारखण्ड से तरुआ देवीजी का गाया गीत रिकॉर्ड कर रहे हैं. गीत झारखण्ड में रोजगार के अभाव में होने पलायन से सम्बंधित है, पत्नी -अपने पति के दूर चले जाने पर अपनी बिरह-वेदना प्रस्तुत कर रही है...
घर से बाहर भैलों, गैलों लुधियनवां... ए साजन..!
साजन ना करील हमर, बनवे के खनवां...ए साजन
सुबह-शाम घरवां में पोछवा लगैलू
दालि-रोटी-शब्जी हमें, मालिक के खियवलू
धोवे के नाहीं मन करे, जूठा बरतनवा...ए साजन...!
साजन ना करील हमर...
मालिक कहे सुना नौकर, ईधर आओ..!
सरसों का तेल लेके, पैर-हाथ दबावो.....!
अंखिया से बहैलों रे भीगे है नयनवां ...ए साजन ..!
घर से बहार भैलों, गैलों लुधियनवां... ए साजन..!
साजन ना करील हमर............