अब तो मजहब आज कोई ऐसा बनाया जाए, जिसमें हर इंसान को इंसा बनाया जाए...
अब तो मजहब आज कोई ऐसा बनाया जाए
जिसमें हर इंसान को इंसा बनाया जाए
फूल ऐसा अपने बगिया में खिलाया जाए
जिसमें हर इंसान को इंसा बनाया जाए
जिसकी खुशबू से महक जाए पड़ोसी का भी घर
फूल ऐसा अपनी बगिया में खिलाया जाए
जिसमें हर इंसान को इंसा बनाया जाए.…
आग बहती हैं यहाँ गंगा में भी झेलम में भी
अब कोई बतलाए कहाँ जाकर नहाया जाए
जिसमें हर इंसान को इंसा बनाया जाए.…
प्यार का ग़म क्या होता है ये समझने के लिए
मेरे आंसू तेरी पलकों से उठाया जाए
जिसमे हर इंसान को इंसा बनाया जाए