नर चेत रे तेरे मन क़ी गंगा हो गयी मैली रे...
नर चेत रे तेरे मन क़ी गंगा हो गयी मैली रे
प्यार की धार सिमटती जाए पाप का दलदल बढ्ता जाए
तू खुद खुद का नाश करे रे ये अजब पहेली रे
रोज महाभारत घर घर में युद्ध धरा अम्बर में
ज़हर घोलती रोज लड़ाई जान के दुश्मन भाई भाई
काम क्रोध मदमोह की निकलें रे नित नित रेली रे
मन से मन को जाँच परख ले मन क़ी बंदे खोंज खबर ले
मन को नित नित उज़्ज़वल कर ले घहरायी तक निर्मल कर ले
कोई न तेरा साथ निभाए क़ोई न तुक्षको राह दिखाये
तुक्षे निरन्तर चलना होगा पल पल तिल तिल ज़लना होगा
खुद ही जलकर बन जा बन्दे ज्योंति अग्नि रे