श्रमिक मेरे प्रकृति पिता...
श्रमिक तुम रंग-प्रकृति मेरे सुंदर पिता
कल-कल से कितना गहरा खन-खन
स्वांस खींचते राग-बाण तिहारे
स्वांस टूटते तान-तुंग तिहारे
कितने भावुक सरल हृदय, किंतु
वज्र तोड़ते कितने विकराल,
हे, श्रमिक तुम रंग-प्रकृति मेरे सुंदर पिता .
गगन-धरा को एक से करते
ऊंचे-ऊंचे महले गढ़ते
चढ़ शीर्ष महल की शिखा से
तुम दिखते कितने बौने पिता.
तब राग तिहारे हम सुन नहीं पावें
तब तान तुम्हारे पहुँच न पावें
तब तुम कितने हारे हे प्रकृति पिता
तब तुम कितने बौने मेरे प्रकृति पिता