मेरे भारत की ऐसी तस्वीर बने...दो कवितायेँ
कोटा, राजस्थान से साथी मनोज कुमार शंगी देश में चुनाव का समय होने के कारण दो कवितायेँ सुना रहे हैं. पहली कविता देश के विकास पर है और दूसरी एक दुर्दशाग्रस्थ बालक के ऊपर.
1-
मेरे भारत की ऐसी तस्वीर बने
जिसमें वर्ण-विहीन, धर्म-विहीन समाज का हो निर्माण,
चारों तरफ़ खुशियाली हो, ना हो कोई अभिमान,
नारी की पूजा हो, करें मात-पिता का सब सम्मान,
मेरे भारत की ऐसी तस्वीर बने
जिसमें वर्ण-विहीन, धर्म-विहीन समाज का हो निर्माण,
२-
एक बालक को देखा,
दुर्दशा में, फटे हुए वस्त्र, बाल बिखरे हुए
तेज़ धूप में पत्थर तोड़ता, अपने घर का भार लिए,
रोटी की खातिर बालक करता कठोर श्रम,
अवस्था उसकी 10 की है, फिर भी भार उठाता 20 का,
पिता की मृत्यु, माता की बीमारी, भाई-बहनों की परवरिश
उस पर करता है कठोर श्रम
एक बालक देखा,
दुर्दशा में, फटे हुए वस्त्र, बाल बिखरे हुए.