ओ नारियों उठो कि रास्ते तुम्हें पुकारते...
ओ नारियों …!
ओ नारियों उठो कि रास्ते तुम्हें पुकारते
ओ नारियों……… !
ओ नारियों उठो कि रास्ते तुम्हें निहारते
उठो कि राज-पाठ का गुबार धुल के मिट सके
उठो कि ऊंच-नीच का जहाँ में फर्क मिट सके
कोई किसी पर जोर जुल्म अब न कर सके यहां
अकाल और भूख से कोई न मर सके यहां
ओ नारियों ……।
उठो कि आंसुओं का राज इस जमीं से ख़त्म हो
उठो कि दमन नारियों का इस जमीं से ख़त्म हो
उठो कि जिंदगी का आफताब जगमगा सके
उठो कि मौत का निशान अब न सर उठा सके
ओ नारियों …!
ओ नारियों उठो कि रास्ते तुम्हें पुकारते
ओ नारियों……… !
ओ नारियों उठो कि रास्ते तुम्हें निहारते
ओ नारियों …!