मत भटक, एक राह पकड़ ले अपने इरादों को जकड़ ले...दो कवितायेँ
मत भटक, एक राह पकड़ ले अपने इरादों को जकड़ ले
उत्साह का इंजन लगा ,आलस का धुँआ उड़ा
मेहनत हसी ख़ुशी,दूर भगा बेबसी
देख जा रही उन्नति पीछे पड ले अपने इरादों को जकड़ ले
खुद बढ और दूसरो को तक़दीर दे, दिमाग का टार्च जला
अँधेरा चीर दे ,हौसले बुलंद कर बकवास बंद कर
दुनिया दौड़ रही, दौड़ना पसंद कर
मुकाम करीब है तेरा क्योकि हर जगह हबीब है तेरा
पवन के संग चल हंस की तरह उड ले अपने इरादों को जकड़ ले
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अंग्रेजो को गमन किये बीते कई एक वर्ष,
फिर भी मासूम जनता को क्यूँ करना पड रहा संघर्ष ,
सपना तो राम राज़ का था ,और राज़ छुपाये जाते है.
बेगुनाह बेखौफ यहाँ मोहताज़ सताए जाते है .
क्या यही राजनीति है तुम ही करो निष्कर्ष
फिर भी मासूम जनता को क्यूँ करना पड रहा संघर्ष ,
जाति पाति ,ऊंच नीच धर्म मज़हब की बीमारी है
लाइलाज यह मर्ज़ हुवा कैंसर पर पड़ता भरी है,
कहा मिलेगा इसका डाक्टर कहा मिलेगी नर्स
फिर भी मासूम जनता को क्यूँ करना पड रहा संघर्ष