तू कहीं भी रहे सर पर तेरे रज्जा बस है...गजल
कुशीनगर उत्तरप्रदेस से सुकई कुशवाह हूँ मै एक गजल पेश कर रहे हैं
तू कहीं भी रहे सर पर तेरे रज्जा बस है-
तू कहीं भी रहे सर पर तेरे रज्जा बस है-
तेरे हाथों की लकीरों में मेरा नाम तो है-
तू कहीं भी रहे सर पर तेरे रज्जा बस है-
मुझको तू अपना बना या ना बना तेरी खुशी-
तू जमाने मे मेरी नाम मुहजुबां है मेरी-
तू कहीं भी रहे सर पर तेरे रज्जा बस है...