नारी देवियों के समान: महिला दिवस के उपलक्ष्य मे एक कविता
नारी एक, रुप अनेक
बोलती नारी, डोलती नारी
मचलती नारी, बिलखती नारी
बलखाती नारी, गम खाती नारी
खेलती नारी, झेलती नारी
श्रृंगार की नारी, सँवारती नारी
बिगाड़ती नारी, बनाती नारी
नारी काँटों की चुभन, नाजुक सुमन
मोहब्बत का चिराग, दहकती आग
दर्द का मरहम, सुकून और रहम
बिजली की कौंध, उजली चकाचौंध
मनोहर छवि, पूजनीय देवी
खिलखिलाती धूप, लुभावनी रुप
हया की चादर, दया की सागर
रुप की माया, दुख में छाया
तन की बिजली, मन की शांति
हाथ की रेखा, माँ की ममता नारी है
घर की लक्ष्मी, किस्मत का करिश्मा
करुणा की देवी, ममता का आंचल
पवित्र गंगा, नारी है
रात की रानी, सुख का बेला
बहन की राखी, ईश्वर की वंदना
धर्म का बिंदु, आँख का काजल
पाँव का पायल, घर की शोभा
धन की वर्षा, हुस्न की मलिका
स्वर्ग की मेनका, नारी है
कभी काली, कभी दुर्गा
कभी प्यार, कभी श्रद्धा
कभी सीता, कभी सूर्पनखा
कभी ज्वालामुखी, कभी सूरजमुखी
कभी सोनिया, कभी सानिया
कभी अर्धांगनी, कभी सुहागन
कभी सती, कभी सावित्रि
फिर क्यूँ नारी घर के अंदर,
बैठे-बैठे सिसक रही?
फिर क्यूँ नारी के पैरों को,
समाज की जंजीरें जकड़ रही?
फिर क्यूँ नारी को आज,
अबला समझा जाता है?
फिर क्यूँ नारी के सपनों को,
दबा-कुचला जाता है?
फिर क्यूँ नारी के हकों-अधिकारों को,
उनसे छीना जाता है?
जल, अग्नि, वायु, मृदा,
जीने का आधार है।
नारी बिना भी जीवन का,
कामना करना निराधार है।
नारी बिना जीवन नैया,
एक पल भी चल सकती नहीं।
नारी बिना एक फूल भी,
शाखों पर फल सकती नहीं।
नारी को स्वतंत्र रुप से,
जीने देना चाहिए।
नारियों का आरक्षण, एक तिहाई नहीं,
आधी-आधी होनी चाहिए।
इस संसार में नारियों का किरदार,
सबसे ऊँचा और महान है।
हर वक्त हो इसकी पूजा,
नारी देवियों के समान है।
नईम एजाज़