Main Ram Ko nahee janta...A poem on unorganized laborers
Ravi Saxena of Delhi Shramik Sangathan who fights for rights of unorganized laborers have sent this poem :
मैं राम को नहीं जानता
अल्लाह को नहीं जानता
नानक को नहीं जानता
मसीह को नहीं जानता
भूख की अग्नि में जलते बच्चे
बढती बेरोज़गारी, बढते खर्चे
तेज़ हवाओं से हिलता छप्पर
बरसों से नया कपडा नहीं तन पर
पत्नी की साडी फट चुकी है
मेरी बूढी मां ऐनक के लिए दुखी है
कर्ज़ लौटाने के लिए धमकी देता साहूकार
चार महीने की मज़दूरी खा गया ठेकेदार
अपने दमन, अपने शोषण
अपनी व्यवस्था, अपनी लाचारी
गहरी खाई से गहराती अपनी गरीबी के सिवा
मैं किसी को नहीं जानता