वनांचल स्वर: पहले महुआ, टोरी, सरई का तेल खाते थे अब वह ख़तम है, सब बाज़ार से तेल लाते हैं...
ग्राम पंचायत-अंतागढ़, ब्लॉक-अंतागढ़, जिला-उत्तर बस्तर कांकेर (छत्तीसगढ़) से रानो वड्डे के साथ में एक समाज सेवी संतोषी गावड़े जी है जो जंगल अभी कैसा है पहले कैसा था इसके बारे में गोंडी भाषा में बता रही हैं | वे कह रही हैं पहले जो जंगल पहाड़ो में मिलता था जैसे महुआ, टोरा, चार, सराई, तेंदू ये सब के फल पहले खूब हुआ करता था अभी धीरे-धीरे लुप्त हो रहा हैं जंगल भी साफ़ हो रहे है पल के वृक्ष भी कटाई करने से कम हो रहे है टोरा, सराई, चार ये सब पेड़ों के फल के बीजो का तेल निकाला करते थे और गाँव के लोग खाने में उपयोग करते रहे हैं अब सभी गाँव देहात में भी बाजारों का तेल खाने में उपयोग कर रहे हैं | जल जंगल पानी सब विलुप्त होने की कगार पर हैं |