डोकरी दाई हर गोबर बिन हान के, छेना ला थोपत है...छत्तीसगढ़ी कविता
ग्राम-तमनार, जिला-रायगढ़ (छत्तीसगढ़) से कन्हैयालाल पड़ीयार एक छत्तीसगढ़ी कविता सुना रहे है:
डोकरी दाई हर गोबर बिन हान के, छेना ला थोपत है-
छेना ला थोपत-थोपत, मन में मन मा गुणत है-
मैं घलो पढ़े रहते तो कोनो ऑफिस मा, बड़े अफसर डॉक्टर बने रहते-
उंच कुर्सी में बैठ के, हुकुम ला मै घलो बजात है-
मोर हवे फूटा करम, ओखर खातिर गोबर मा मै सनाय हूँ-
आगू पिछु जम्मो ला सोच के, अपन चोला ला धधाय़ हूँ...