बहोत अभिमान मैं करथों छत्तीसगढ़ के माटी मा...छत्तीसगढ़ी कविता -
बोडला बाजार (छत्तीसगढ़) से मथुरा प्रसाद वर्मा छत्तीसगढ़ी में एक कविता सुना रहे हैं :
बहोत अभिमान मैं करथों छत्तीसगढ़ के माटी मा – मोर अंतस जुड़ा जाथे बटकी भर के बासी मा – ये माटी नो है ये महतारी एकर मान तुम करो – महू तरसे हों तोरे बर तहू ला तरसे ला परही – मैं केतका दुरिहा रेंगे हों तहूं ला सरके ला परही – मै तोरे नाम के चातक अभी ले प्यासा बैठे हों-
तड़प मोर प्यास मा होही ता तोला बरसे ला परही...