एक बच्ची स्कूल नहीं जाती, बकरी चराती है, वह लकडियां बटोरकर घर लाती है...
ग्राम-देवरी, जिला-सूरजपुर (छत्तीसगढ़) से कैलाश सिंह पोया श्याम बहादुर नम्र की एक कविता सुना रहे है:
एक बच्ची स्कूल नहीं जाती, बकरी चराती है-
वह लकडियां बटोरकर घर लाती है-
फिर मां के साथ भात पकाती है-
एक बच्ची किताब का बोझ लादे स्कूल जाती है-
शाम को थकी मांदी घर आती है-
वह स्कूल से मिला होमवर्क मां-बाप से करवाती है-
बोझ किताब का हो या लकडी का-
बच्चियां ढोती हैं-
लेकिन लकडी से चूल्हा जलेगा-
तब पेट भरेगा-
लकडी लाने वाली बच्ची यह जानती है-
वह लकडी की उपयोगिता पहचानती है-
किताब की बातें कब किस काम आती हैं-
स्कूल जाने वाली बच्ची-
बिना समझे रट जाती है-लकडी बटोरना,
बकरी चराना और मां के साथ भात पकाना-
जो सचमुच घरेलू काम हैं-
होमवर्क नहीं कहे जाते-
लेकिन स्कूलों से मिले पाठों के अभ्यास-
भले ही घरेलू काम न हों-
होमवर्क कहलाते हैं-
कब होगा जब किताबें-
सचमुच होमवर्क से जुडेंगी-
और लकडी बटोरने वाली बच्चियां भी-
ऐसी किताबें पढेंगी...