मन का पंछी, इतना मत इतरा...कविता -
ग्राम-तमनार, जिला-रायगढ (छत्तीसगढ़) से कन्हैयालाल पडियारी एक कविता सुना रहे हैं:
रुक जा मन पंछी, इतना मत इतरा-
ये दुनिया रहती, ख़फ़ा ख़फ़ा, यहाँ तेरा नही चलेगा कोई सफा-
कर सके तो कर ले, दुनिया से वफ़ा-
मद मस्त मौला बन, मत मजरा-
पग पग फ़नकारो का पहरा, बिछाए बैठे मौत का घेरा-
लगाते रहते जग का पहरा, इन लोगो से सम्भल, सम्भल कर-
इधर उधर मत उछल, तेरा जीव धन नही अटल-
इन फ़नकारो का क्या सकेगा मसल, यदि जूझना हो तो फौलादी बन जा-
फिर उन फनकारों के सामने जा, जीना हो तो चट्टान बन जा-
फिर जमकर उन फनकारों को ठोक बजा, तब आयेगा उनको मजा-
यही है उन फ़नकारो को सजा...