तेरी नजाकत मेरी शराफत से भारी लगती है: ग़ज़ल
ग़ज़ल सुना रहें हैं अमिर हमजा मुजफ्फरपुर बिहार से :
तेरी नजाकत मेरी शराफत से भारी लगती है – ऐ हसीं तेरी हंसी भी प्यारी लगती है-
तेरा बदन संगमरमर से तराशा लगता है-
तुम मुद्दतो बाद भी हमारी लगती है-
तेरी आँखों में आज भी शर्मो हया बाकी है-
तेरी ख़ामोशी आज भी न जाने क्यों लाचारी लगती है-
तुझे लोग बेवफा कहते है,मुझे रंज होता है-
तेरी हर बेवफाई मुझे वफादारी लगती है-
“हमज़ा”को ज़ाम-ए-मोहब्बत पिलाई थी तुमने-
बन ना जाये मय कहीं ज़िन्दगी हमारी लगती है...