मानव अधिकार दिवस : केदारनाथ अग्रवाल की कविता नेताशाही
राज करो जी राज करो दिल्ली के दरबार में
गांधीवादी आदर्शों के सत्यों की किलकार में
खोई खोई शहंशाही रौनक की झंकार में
सुंदर सुंदर सपने देखो शासन के शयनागार में
राज करो जी राज करो दिल्ली के दरबार में
सामंती के आलिंगन में सामंती के प्यार में
सामंती के मन के भीतर गुपचुप रखना गार में
जगमग खूनी दीप जलाए भारी हाहाकार में
राज करो जी राज करो दिल्ली के दरबार में
थैलीशाही को गोदी में, लक्ष्मी के कलहार में
सोना चांदी की खनखन में, काले चोर बाज़ार में
रक्षा के कानून बनाए शोषक के उपकार में
राज करो जी राज करो दिल्ली के दरबार में
शान धरो जी शान धरो जी अपनी शक्ति की कटार में
वार करो जी वार करो अपनी जयजयकार में
खून करो जी खून करो नेताशाही प्यार में
केदारनाथ अग्रवाल
Posted on: Dec 10, 2010. Tags: Prem Prakash
Govt must act to stop kidnap of children in Chhattisgarh
Aman Verma from Koria district of Chhhattisgarh says the abduction of children is becoming a common incident in the state these days and the government must put their act together to stop repeat of such incidents
Posted on: Dec 10, 2010. Tags: AMAN VERMA CHHATTISGARH
खबर आई है कि कुएं बन्द किए जा रहे हैं...
खबर आई है कि कुएं बन्द किए जा रहे हैं
यहां से गुज़रने वाला कोई भी राहगीर किसी से भी पानी मांग लिया करता था
वैज्ञानिक के दल ने बताया
कि इसमें आयरन की कमी है
मिनरल का अभाव है
बुखार होने का खतरा है
अब इस कुएं के पानी से सूर्य को अर्घ्य नहीं दिया जा सकेगा
उठा देनी पडेगी रसम गुड और पानी की
सील कर दिए कुंए
रोक दी गई सिंचाई
सूखी धरती पर चिलचिलाती धूप में बैठी आंख मिचमिचाते बूढी मां ने बताया
चेहरे से उतर गया पानी
नालियों में बह गया पानी
आंखों का खून सूख गया पानी
प्लास्टिक में बिक गया पानी
फरीद खान
Posted on: Dec 10, 2010. Tags: Aloka
नागपुरी कविता हेजाय गेलक हीरानागपुर का हिंदी अनुवाद
खो गया हीरानागपुर
मिट रहा सरना
धँस रहा मसना
गाँव का चुआँ
खलिहान का कुंबा
पूरा घर, पूरा बखरी
नहीं मिलते अब तो
एक भी रूगड़ा-खुखड़ी,
सहिया-मितान मददत
गोतिया-गुइया भी (रिश्ते-नाते)
अब तो बेधड़क
बोलने लगे हैं भाषा जापानी,
मुर्गा का बांग
ढेंकी का
ढाँकू चाँ-ढाँकू चाँ
पतल में डबकते
धान की धमक
नहीं दिखते अब तो
मोर,तोता आउर पोस मैना,
मड़ुवा रोटी, पीठा
धुसका, सकरपाला
नहीं मिलते अब तो
अपना देश का गुलगुला
वन-पहाड़, टोंगरी-पतरा
घूमते रहते थे
सियार, बाघ, भालू
चोंचा चिड़िया का घोंसला,
नहीं मिलते अब तो
हँसली-पौंची गले की सिकरी,
करया-फेटा,लुगा-झूला
हल-कुदाल फार
खुरपी-पाटा
सगरगाड़ी पितामाह का कंधा,
नहीं मिलते अब तो
एक भी पहर भांफा कंदा,
जतरा-मेला
रामढेलुवा-झूला
कुमना,बारहा
जांता-चाला
मोरहा, पटिया
बच्चों की खाट
नहीं मिलते अब तो
नापा-जोखा, सेरहा पैला,
अम्बा, जामुन, डउह, कटहल
पीले बांस की हड़ुवा-करील
सुरगुजा, ठेपा, कुदरूम
लाले-लाल तूंत पातले
नहीं मिलते अब तो
गोलगोला साग चाकोढ़ गुड़ा,
घड़ा-खपड़ा
कुंआ-तालाब
डमकच-अधरतिया
राग अंगनई
नहीं सुनाते अब तो
अखाड़े में
तांग-तांग धातिंग तांग...!
वीरेन्द्र महतो की मूल नागपुरी कविता का हिंदी अनुवाद स्वयं कवि द्वारा